Think For A Minut..,

Wednesday 31 July 2013

मानसिक शक्ति कि शक्ति ( The power of mental power)


३१-जुलाई-२०१३
            सभी प्यारे दोस्तों , छोटे भाई-बहनों और माता-पिता समान बुजर्गो , आप सभी को देवेन्द्र सिंह कि और से प्यार भरा नमस्कार |
मै आज जिस विषय के बारे मै चर्चा करने जा रहा हूँ वो सोचने कि शक्ति के बारे मै है कि किस तरह लोग अपनी इस शक्ति को नज़रंदाज़ करते है | इस दुनिया मै ज्यादातर जीव स्वयं मेहनत नहीं करना चाहता है वह दुसरो के मेहनत से प्राप्त
फल मै अपना गुज़ारा चलाना चाहता है और यही चोरी जैसे अपराध को बढ़ता है, आज मनुष्य इतना आलसी हो गया है कि वह सोचना तक नहीं चाहता है, आप ही सोचिए अगर ऐसा न होता तो भला हमारे देश मै चोरी , भ्रष्टाचार , एजेंट जैसी संज्ञो
का भला प्रयोग ही क्यों होता, ये तो कुछ राष्ट्रीय स्तर  के अपराध है अगर सामाजिक स्तर  कि बात करे तो छोटे-मोटे  पेपर मै नक़ल भी न होती |
तात्पर्य यह है कि आज आलस्य ने मनुष्य को इतना जकड रखा है कि मनुष्य खुद इससे बहार नहीं आना चाहता है, अभी कुछ दिनों पहले मेरे सामने इसका एक उदाहरण आया है जो मै आपके साथ बाटना चाहूँगा, पिछले सप्ताह मैं ट्रेन से कही
जा रहा था लेकिन ट्रेन लेट होने के कारन वहा बैठा इंतज़ार कर रहा था मेरे सामने  एक पानी कि टोंटी थी जो कि घुमाकर खोलकर पानी पीने वाली थी पर उसके आकर और सरंचना को देखकर लगता था कि उसे दबाकर खोला जायेगा उसके साथ मै
दूसरी टोंटी थी जो दबाकर ही खोली जाती थी , मैंने कम से कम 14-15 लोगो को देखा सब उस टोंटी को दबाकर पानी पीने/भरने कि कोशिश कर रहे थे आखिर मै दूसरी टोंटी के पास चले जाते ,, मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि सब बगल
वाली टोंटी को देखकर ही उसे खोलने का प्रयास कर रहे थे उनमे से किसी ने भी उस टोंटी को घुमाने का या ध्यान से देख कर खोलने का प्रयास नहीं किया ||
ऐसे ही हमारे दैनिक जीवन मै न जाने कितने उदाहरण मिलते है जो यह साबित करते है कि मनुष्य शारीरिक और मानसिक तौर पर कितना आलसी हो चूका है ,, हाँ! इसका यह मतलब नहीं है कि पृथ्वी से सरे उत्तम पुरुष लुप्त हो चुके है,
पर ज्यादातर मनुष्य अपने उस अन्दर कि महान शक्ति को भूल चुके है, जिन लोगो को भगवान मै विश्वास है वो इस बात को भी मानते होंगे कि भगवान का निवास पत्थर कि मूर्तियों में  न होकर इंसान के दिल में  होता है , अगर आप ध्यान से
अपने हाथो को देखे तो पाएंगे यह चमड़ी से लिप्त है , चमड़ी कोशिकाओ से बनी है और कोशिका इसके उपांगो जैसे कोशिका केंद्र, और अन्य अंगो से मिलकर बना है ये उपांग भी तो प्रोटीन, विटामीन जैसी सरंचनाओ से मिलकर बने है,और ये सरंचाए
अणु परमाणु से .. तात्पर्य यह है कि अंत मै हमारा शारीर उर्जा से बना हुआ है अगर आप को मेरी बात का विश्वास न हो तो आप किसी भी क्वांटम विज्ञान के बारे मै जानकारी रखने वाले इंसान से पूछ लीजिए , उसी का भी यही जवाब होगा
और मेरे प्यारे मित्र गणों आप तो इस बात से १०० फीसदी सहमत होंगे कि इश्वर भी एक महान शक्ति है,उर्जा है ,, तो इस हिसाब से हम भी इश्वर के एक रूप है, अगर आप इस सत्य को  स्वीकार करते है और अपने अन्दर छुपी उस महान शक्ति
जिसे हुम भगवान कहते है के अस्तित्व को स्वीकारते है तो यकीन  मानिए दोस्तों आप नहीं जानते आपने कितनी बड़ी सफलता को प्राप्त करने के योग्य हो जाते है , हाँ यह बात भी कि मेरे कुछ मित्रगण नास्तिक भी होंगे पर जरा सोचिए मै आपको
इश्वर मै नहीं अपने अन्दर छुपी उस शक्ति उस उर्जा पर विश्वास करने को कह रहा हूँ , यह वो उर्जा है जो आपको कोई भी सफलता दिला सकता है आप कि ज़िन्दगी को स्वर्ग बना सकती है आप के रिश्तो मै मिठास ला सकती है जरुरत
है तो बस इसपर यानी अपने आप पर विश्वास करने की | कहा जाता है कि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है इस बात से मै पूरी तरह सहमत हूँ क्योकि मुझे उस आंतरिक शक्ति शक्ति पर विश्वास है जो ये सब करने मै सक्षम है,
मेरा मानना है कि मनुष्य अपनी आस-पास कि परिस्थितियों का स्वयं जिम्मेदार होता है, वह अपने आस-पास होने वाली प्रत्येक घटना दुर्घटना सुघटना का स्वयं और केवल स्वयं जिम्मेदार होता है वैसे भी भाग्य को दोष देना कारयता और आलस्य कि
निशानी है, मनुष्य अपने चारो और कि परिस्थितियों को आकर्षित करता है, आप कहेंगे कि हम भला अपना बुरा क्यों सोचेंगे लेकिन फिर भी हमारे साथ बुरा तो होता ही है. तो इसका सिर्फ एक ही जवाब है जैसा कि मैंने पहले भी कहा है मनुष्य अपनी
समस्याओं का स्वयं जिम्मेदार है, हम भले ही अपना बुरा न सोचते होंगे होंगे पर हम अपने बुरा हो जाने के डर के बारे मै सोचते तो है ही बस येही वह डर है जो आपकी मानसिक शक्ति से उत्पन्न होता है और आपके विध्वंश का कारण बनता है
इस अंनोखी मासनिक शक्ति के बारे में मैं आपको अपने अगले पोस्ट मै बताऊंगा | फिलहाल आप इतना समझ लीजिए कि हमारा दिमाग भगवान कि वह कृति है जो हमें उस भगवान से संपर्क बनाने मै मदद करती है बिलकुल किसी कंप्यूटर के मॉडेम कि तरह
आप सब कि जानकारी के लिए बता दू कि मै स्वयं नास्तिक स्वभाव का हूँ, लेकिन घर वालो को खुश रखने के लिए भगवान कि पूजा-अर्चना भी करता हूँ भगवान को खुश रखने के लिए नहीं |
मेरा इस पोस्ट का सारांश यह है कि मनुष्य अगर चाहे तो वह किसी भी मंजिल को पा सकता है, कोई भी काम सकता है , बस उसमे करने कि और सिखने कि चाह होने चाहिए , आपने अक्सर देखा होगा कि अपनी कक्षा मै होशियार छात्र प्रत्येक विषय मै
बढ़िया प्रदर्शन करते है, वही पढाई मै कमजोर छात्र पढाई के अलावा किसी न किसी अन्य काम में जरुर अच्छे  होते है उन्हें या तो क्रिकेट मैच का पूरा ओवर टू ओवर पूरा स्कोर याद होता है या फिर किसी गाने के सारे  बोल याद होते है , तो इससे साबित होता है कि
वे मानसिक रूप से कमजोर नहीं है बस कमजोरी है तो सिर्फ मानसिक शक्ति को केन्द्रित करने मै और विषय मै रूचि उत्पन्न करने मै, येही मानसिक शक्ति का रहस्य है अगर किसी ने इससे केन्द्रित करना सिख लिया हो तो वह शुरू से होशियार होता है ,
और कुछ छात्र इसे सिख नहीं पाते और पिछड़ जाते है और उनके माता-पिता ज्ञान के अभाव में उन्हें सजा देते है, तो मानसिक शक्ति को उपयोग करने का यानी इस्तेमाल मै लाने का सिर्फ यही तरीका है कि आप इसपर ध्यान केन्द्रित करे |
मानसिक शक्ति को केन्द्रित करने कि क्षमता वंशानुगत होती है इसमें मेरा विश्वास नहीं है पर कुछ लोगो का मानना है कि यह वंशानुगत होता है .. मेरा मानना है कि कोई भी अगर चाहे और जिसे विश्वास है कि वो यह के सकता है, इस अनोखी शक्ति
का मालिक बन सकता है , आपने देखा होगा कि जो विद्यार्थी पढाई में होशियार होते है पुरे दिन किताबो में नहीं रहते और न ही किताबी कीड़े कि ज़िन्दगी जीते है मै स्वयं भी अछे छात्रों कि श्रेंणी में आता हूँ ऐसे छात्रों कि पकड़ बहोत मजबूत होती है ,
वे एक बार का पढ़ा अधिक समय तक याद रख पाते है , स्वामी विवेकानंद के बारे में तो आप जानते ही होंगे उनकी स्मरण शक्ति का लोहा तो विदेश में भी मन जाता है , आप सोच रहे होंगे कि भाई वो तो विवेकानंद है अब हम या हमारा बेटा विवाकानंद तो है
नहीं कि ऐसा दिमाग और ऐसे यादास्त रखे ये मै सिर्फ इतना कहूँगा कि क्या विवेकानंद जी कोई एलियन थे या कोई वैज्ञानिको को बनाया गया कोई रोबोट था वह भी हमारी हाड-मॉस का इंसान था दिमाग सभी के पास होता है बस उसे इस्तेमाल करने का हुनर सभी के
पास नहीं होता है , आप ने यह भी अल्बर्ट आइनस्टीन ने भी अपने दिमाग का सिर्फ 5% इस्तेमाल किया और वो आज इतना बड़ा वैज्ञानिक मन जाता है तो जरा सोचिए (think for a minut) अगर वो ऐसा कर सकता है तो आप क्यों नहीं ....?
अपने अन्दर कि उस महान शक्ति पर विश्वास कीजिए ..
मेरे अगले पोस्ट मै विश्व क महान रहस्य के बारे मै जानिए ||
अंत मै मेरा प्यारे मित्रगणों को मेरा प्यार भरा नमस्कार |
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